नेपाल में Gen-Z विरोध प्रदर्शनों का उभार: सोशल मीडिया प्रतिबंध से हिंसा तक
प्रस्तावना
नमस्कार! मैं हूँ Monu, स्वागत है आपका मेरी वेबसाइट monusir.com पर और आज हम चर्चा करेंगे नेपाल में हालिया Gen-Z-द्वारा नेतृत्व किए गए हिंसक विरोध प्रदर्शन की — जो सोशल मीडिया प्रतिबंध से शुरू हुआ और देशभर में उथल-पुथल मचा गया। इस स्थिति ने न केवल युवा पीढ़ी की नाराज़गी को उजागर किया, बल्कि सरकारी निर्णयों और मानवाधिकारों के सवाल भी खड़े कर दिए।

घटना का संक्षिप्त विवरण
सितंबर 2025 के पहले सप्ताह में नेपाल सरकार ने सड़क पर कुछ प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म—जैसे Facebook, X (पूर्व Twitter), YouTube, Reddit, LinkedIn—पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि ये तकनीकी पंजीकरण और स्थानीय अनुपालन की शर्तें पूरी नहीं कर रहे थे। ये कदम Gen-Z विरोध कहे गए आंदोलनों को जन्म देने वाला मुख्य ट्रिगर बन गया। 1
कारण और पृष्ठभूमि
सरकार का कहना था कि पंजीकरण और स्थानीय कार्यालय/डेटा शेयरिंग की शर्तों के न पालन करने से प्लेटफॉर्म गलत सूचनाओं, झूठी पहचान और साइबर अपराधों का स्थल बन गए हैं। हालांकि, आलोचकों ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना। विशेष रूप से युवा पीढ़ी—Gen-Z—ने इसे लोकतंत्र और पारदर्शिता की कमी का प्रतीक बताया। 2
घटनाक्रम: विरोध से हिंसा तक
8 सितंबर 2025 को काठमांडू के साथ-साथ कई अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। युवा प्रदर्शनकारी संसद भवन के पास इकट्ठा हुए, वहां पुलिस द्वारा आंसू गैस, वॉटर कैनन, रबर की गोलियाँ और अंततः वास्तविक गोलियाँ दागी गईं। नतीजतन कम से कम 19 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। गृह मंत्री Ramesh Lekhak ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। 3
प्रतिक्रिया और प्रभाव
- सरकार ने तत्काल सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटा लिया—सोमवार रात तक सभी प्लेटफ़ॉर्म बहाल कर दिए गए। 4
- देश और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस कार्रवाई की निंदा की और स्वतंत्र जांच की मांग उठाई। 5
- देश में व्यापक असंतोष और भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्से की भावना मजबूत हुई। कई युवा इसे सरकार की जवाबदेही पर हमला मानते हैं। 6
निष्कर्ष
नेपाल में Gen-Z द्वारा नेतृत्वित ये विरोध प्रदर्शन केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ नहीं थे; यह सरकार की जवाबदेही, पारदर्शिता और युवा आवाज़ को दबाने के खिलाफ था। 19 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई, लेकिन नतीजा यह हुआ कि सरकार ने कदम पीछे खींचे और बहस की Z-पीढ़ी की आवाज़ सुननी पड़ी।
अंत में, मैं बस इतना ही कहूंगा कि यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र में आवाज़ दबाना नहीं बल्कि उसे सुनना महत्वपूर्ण है। जब युवा बोलते हैं, उन्हें नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता—क्योंकि आज की Gen-Z का संघर्ष कल के लोकतंत्र की नींव है।