संवैधानिक विकास (Constitutional Development) – डिटेल नोट्स
परिचय
भारतीय संविधान का विकास एक लम्बी, जटिल प्रक्रिया थी जिसमें ब्रिटिश कालीन शासकीय व्यवस्था, स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों, विभिन्न आयोगों और विधायी पहलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस विषय का अध्ययन भारतीय संविधान के निर्माण को समझने के लिए बेहद जरूरी है। संवैधानिक विकास के चरणों ने भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप को आकार दिया।
ब्रिटिश भारत में संवैधानिक विकास के प्रमुख चरण
भारतीय संविधान का विकास मुख्यतः ब्रिटिश सरकार की अधिनियमों और आयोगों के माध्यम से हुआ, जिनके प्रमुख चरण निम्न हैं:
- 1858 का सरकार का अधिनियम (Government of India Act, 1858)
1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण समाप्त कर सीधे ब्रिटिश संसद के अधीन भारत को रखा। यह अधिनियम प्रशासनिक बदलाव का पहला बड़ा कदम था।
- 1861 का सरकार का अधिनियम (Indian Councils Act, 1861)
इस अधिनियम के तहत भारतीय परिषदों की स्थापना हुई, जिससे भारतीयों को कुछ हद तक प्रशासन में भागीदारी मिली, लेकिन यह प्रतिनिधित्व सीमित था।
- 1892 का भारतीय परिषद अधिनियम (Indian Councils Act, 1892)
इसमें विधान परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई और परोक्ष चुनाव की शुरुआत हुई। यह पहला कदम था लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की ओर।
- 1909 का मोंटफोर्ट रिपोर्ट और भारतीय परिषद अधिनियम (Indian Councils Act, 1909)
मोंटफोर्ट आयोग ने भारतीयों को प्रशासन में अधिक भागीदारी देने की सिफारिश की। अधिनियम में निर्वाचित सदस्य बढ़ाए गए, और “संयोजित निर्वाचन” (Communal Electorates) लागू हुआ, जिसमें विभिन्न धार्मिक और जातीय समूहों के लिए अलग-अलग सीटें निर्धारित की गईं।
- 1919 का सरकार का अधिनियम (Government of India Act, 1919)
जिसे मॉन्टेग्यू-चेल्म्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं, इस अधिनियम ने “डुअल शासन” (Dyarchy) व्यवस्था शुरू की। कुछ विषय प्रांतीय मंत्रियों के नियंत्रण में दिए गए, जबकि कुछ केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहे।
- 1935 का सरकार का अधिनियम (Government of India Act, 1935)
यह अधिनियम भारत का सबसे बड़ा संवैधानिक सुधार था। इसमें संघ और प्रांतीय स्वशासन की व्यवस्था की गई, प्रांतीय स्तर पर पूर्ण स्वशासन दिया गया, और केंद्र में सीमित स्वशासन। हालांकि यह अधिनियम कभी पूरी तरह लागू नहीं हुआ।
स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण
स्वतंत्रता संग्राम ने भी संवैधानिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विभिन्न ऐतिहासिक घटनाएँ और आंदोलन जैसे सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च, और भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय जनता की राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लगातार संवैधानिक सुधारों की मांग की। 1930 में लॉर्ड सैटन आयोग ने संविधान निर्माण के लिए समिति बनाई। 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ, जिसने भारत का संविधान तैयार किया।
संविधान सभा और संविधान निर्माण की प्रक्रिया
- संविधान सभा का गठन: 1946 में निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से।
- ड्राफ्टिंग कमिटी का गठन: जवाहरलाल नेहरू के प्रस्ताव पर डॉ. भीमराव आंबेडकर को अध्यक्ष बनाया गया।
- संविधान का मसौदा तैयार करना: लगभग 2 वर्षों की प्रक्रिया, जिसमें व्यापक बहस और संशोधन हुए।
- 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को स्वीकार किया।
- 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ, जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं
- लिखित संविधान: संविधान को लिखित रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- संघीय और एकात्मक तत्व: भारत में संघ और राज्य दोनों की शक्तियाँ संतुलित हैं।
- लोकतांत्रिक गणराज्य: भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है जहाँ जनता सर्वोच्च है।
- विविधता में एकता: विभिन्न भाषाएँ, धर्म, जाति के बावजूद एकता कायम रखता है।
- संविधान संशोधन: संविधान को संशोधित किया जा सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया कठिन है।
- मूल अधिकार: नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता: संविधान न्यायपालिका को स्वतंत्रता देता है।
संवैधानिक विकास के महत्व
संवैधानिक विकास ने भारत को लोकतांत्रिक और कानून के शासन वाले देश में बदल दिया। इसने भारतीयों को राजनीतिक अधिकार और स्वतंत्रता दी, और शासन व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाया। संविधान आज भी भारत के समृद्ध लोकतंत्र की आधारशिला है।