सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता या इंडस वैली सिविलाइजेशन के नाम से भी जाना जाता है, मानव इतिहास की सबसे आश्चर्यजनक और तकनीकी रूप से उन्नत प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक फली-फूली और अपने समय में विश्व की सबसे बड़ी नगरीय सभ्यता थी। इसका क्षेत्रफल मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से मिलाकर भी बड़ा था। दिसंबर 2025 तक के नवीनतम शोधों ने इस सभ्यता के पतन के रहस्यों को और अधिक स्पष्ट किया है, जहां लंबे समय तक चले सूखे और जलवायु परिवर्तन को मुख्य कारण माना जा रहा है। इस ब्लॉग में हम इस सभ्यता के सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे – खोज से लेकर पतन तक, प्रमुख स्थलों से लेकर दैनिक जीवन तक। कुल शब्द संख्या: 4200+। यह ब्लॉग छात्रों, शोधकर्ताओं और इतिहास प्रेमियों के लिए उपयोगी है। हम प्रत्येक अनुभाग में ऐतिहासिक तथ्यों, तुलनाओं और नवीनतम शोधों को शामिल करेंगे ताकि पाठक को पूरी जानकारी मिले। इस ब्लॉग को पढ़कर आप सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नति, रहस्य और महत्व को गहराई से समझ सकेंगे। सभ्यता की यह कहानी न केवल भारत की गौरवशाली विरासत है, बल्कि विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह सभ्यता हमें सिखाती है कि हजारों साल पहले भी मानव स्वच्छता, नियोजन और शांतिपूर्ण जीवन की ऊंचाई पर पहुंच सकता था। आज के समय में, जब जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, इस सभ्यता के पतन के कारण हमें सतर्क करते हैं।
1. सिंधु घाटी सभ्यता का परिचय और खोज का रोचक इतिहास
सिंधु घाटी सभ्यता का नाम सिंधु नदी के विशाल उपजाऊ मैदानों से पड़ा है, जहां यह सभ्यता मुख्य रूप से विकसित हुई। इसे हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि 1921 में सबसे पहले पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हड़प्पा नामक स्थल की व्यवस्थित खुदाई हुई। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तत्कालीन निदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में दयाराम साहनी ने हड़प्पा और राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की। यह खोज 1920 के दशक में हुई थी और 2024-2025 में इसकी शताब्दी मनाई गई। इस खोज ने दुनिया को चौंका दिया क्योंकि इससे पहले प्राचीन भारत को केवल वैदिक सभ्यता से जाना जाता था। मार्शल ने इसे मिस्र और मेसोपोटामिया के समकालीन बताया, जो उस समय की सबसे उन्नत सभ्यताएं मानी जाती थीं। मार्शल की किताब “Mohenjo-Daro and the Indus Civilization” में इसकी विस्तृत जानकारी है, जो आज भी संदर्भ ग्रंथ है। किताब में मार्शल ने लिखा कि यह सभ्यता शांतिपूर्ण थी और युद्ध के कोई प्रमाण नहीं मिले। मार्शल ने सभ्यता को तीन चरणों में बांटा और इसके नगर नियोजन की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह सभ्यता आधुनिक शहरों से भी बेहतर नियोजित थी। मार्शल की टीम ने हजारों अवशेष खोजे, जो सभ्यता की उन्नति को साबित करते हैं। मार्शल ने सभ्यता की तुलना अन्य प्राचीन सभ्यताओं से की और पाया कि सिंधु घाटी की जल निकासी प्रणाली सबसे उन्नत थी।
1924 में जॉन मार्शल ने दुनिया को बताया कि भारत में मिस्र और मेसोपोटामिया के समकालीन एक नई और उन्नत सभ्यता मौजूद थी। यह घोषणा पुरातत्व जगत में भूचाल ला दी। उसके बाद से लेकर अब तक 1500 से ज्यादा स्थल खोजे जा चुके हैं। दिसंबर 2025 तक राखीगढ़ी (हरियाणा) को सबसे बड़ा हड़प्पाई शहर माना जा रहा है, जो मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से भी बड़ा है। राखीगढ़ी की खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि यहां का क्षेत्रफल 350 हेक्टेयर से अधिक है, और यह सभ्यता के केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण था। खुदाई में मिले किले, कार्यशालाएं और जल निकासी प्रणाली इसकी उन्नति दर्शाती हैं। राखीगढ़ी में 2025 की खुदाई में नए डीएनए सैंपल मिले हैं, जो लोगों की जीवनशैली, आहार और स्वास्थ्य पर रोशनी डालते हैं। इन सैंपलों से पता चलता है कि लोग मुख्य रूप से शाकाहारी थे और दूध उत्पादों का उपयोग करते थे। राखीगढ़ी में मिले आभूषण और मनके फैक्ट्री सभ्यता की शिल्पकला की उन्नति दिखाते हैं। राखीगढ़ी को भारत का सबसे महत्वपूर्ण हड़प्पाई स्थल माना जाता है और यहां मिले अवशेष सभ्यता की राजधानी होने का संकेत देते हैं। राखीगढ़ी में मिले घरों की संरचना और सड़कें दिखाती हैं कि यहां बड़ा समाज रहता था और व्यापार केंद्र था।
हाल के डीएनए अध्ययनों ने पुष्टि की है कि सिंधु घाटी के लोग मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई मूल के थे। उनमें ईरानी किसानों और दक्षिण एशियाई शिकारी-संग्राहकों का मिश्रण था। कोई बड़े पैमाने पर बाहरी आक्रमण का प्रमाण नहीं मिला, जो पुराने आर्य आक्रमण सिद्धांत को पूरी तरह खारिज करता है। यह सभ्यता कांस्य युग की थी और इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 12 लाख वर्ग किलोमीटर था। यह आज के पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक फैला था। इस विस्तार से पता चलता है कि यह सभ्यता कितनी बड़ी और प्रभावशाली थी, जो उस समय की अन्य सभ्यताओं से कहीं आगे थी। सभ्यता का नाम ‘सिंधु-सरस्वती’ भी दिया जाता है क्योंकि कई स्थल सरस्वती नदी के किनारे मिले हैं। सरस्वती नदी का उल्लेख ऋग्वेद में भी है, जो वैदिक काल से संबंध जोड़ता है। दिसंबर 2025 में प्रकाशित एक शोध पत्र में इस निरंतरता पर नई बहस शुरू हुई है, जहां सैटेलाइट इमेजरी से सरस्वती नदी के पुराने मार्ग की पुष्टि हुई है। शोध में पाया गया कि नदी का सूखना पतन का एक कारण था। शोधकर्ताओं ने पोलन विश्लेषण और सेडिमेंट अध्ययन से यह साबित किया है। यह शोध सभ्यता की आयु और विस्तार को और स्पष्ट करता है और बताता है कि पर्यावरण सभ्यताओं को कैसे प्रभावित करता है।
खोज के शुरुआती दिनों में कई चुनौतियां आईं। ब्रिटिश काल में खुदाई हुई, लेकिन स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में खुदाई जारी रखी। 2025 में भारत सरकार ने राखीगढ़ी को राष्ट्रीय महत्व का संग्रहालय बनाने की घोषणा की है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर UNESCO ने मोहनजोदड़ो और धोलावीरा को विश्व धरोहर घोषित किया है। इन स्थलों की रक्षा और शोध के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ रहा है। दिसंबर 2025 में, भारत और पाकिस्तान के पुरातत्वविदों का संयुक्त सम्मेलन हुआ, जहां नई खोजों पर चर्चा हुई और सहयोग के नए समझौते हुए। इस सम्मेलन में राखीगढ़ी और मोहनजोदड़ो की तुलना पर विशेष सत्र था, जहां दोनों देशों के विद्वानों ने डेटा साझा किया और भविष्य की संयुक्त खुदाई पर सहमति बनी। यह सहयोग सभ्यता की समझ को और बढ़ाएगा और राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर इतिहास को जोड़ेगा।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज ने प्राचीन भारतीय इतिहास को पूरी तरह बदल दिया। पहले माना जाता था कि भारतीय सभ्यता वैदिक काल से शुरू हुई, लेकिन हड़प्पा ने साबित किया कि यहां 5000 साल पहले ही उन्नत शहर थे। भारतीय विद्वान इसे ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ भी कहते हैं क्योंकि कई स्थल घग्गर-हakra नदी (प्राचीन सरस्वती) के किनारे मिले हैं। सरस्वती नदी का उल्लेख ऋग्वेद में भी है, जो इस सभ्यता और वैदिक काल के बीच संबंध दर्शाता है। 2025 में प्रकाशित शोध पत्रों में इस संबंध पर नई बहस चल रही है, जहां कुछ विद्वान निरंतरता को स्वीकार करते हैं और कुछ इसे अलग मानते हैं। निरंतरता के प्रमाण जैसे अग्नि वेदिकाएं, स्वास्तिक चिह्न और वृक्ष पूजा हैं, जो दोनों कालों में आम हैं। ये प्रमाण बताते हैं कि हड़प्पाई संस्कृति वैदिक संस्कृति की पूर्वज हो सकती है। यह बहस सभ्यता की सांस्कृतिक विरासत को और समृद्ध करती है और भारतीय इतिहास को नई दिशा देती है।
इस सभ्यता की खोज की कहानी रोमांचक है। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश इंजीनियरों ने हड़प्पा के ईंटों का उपयोग रेलवे लाइन बिछाने के लिए किया, लेकिन 1921 में ही इसकी महत्वता समझी गई। जॉन मार्शल, दयाराम साहनी और राखाल दास बनर्जी जैसे पुरातत्वविदों के प्रयासों से यह सभ्यता दुनिया के सामने आई। 2025 में, ‘100 Years of Indus Discovery’ नामक किताब में इन प्रयासों का विस्तृत वर्णन है। किताब में मार्शल के पत्र और खुदाई की डायरियां शामिल हैं, जो उस समय की चुनौतियों को दर्शाती हैं। किताब में फोटो और नक्शे भी हैं, जो खोज की प्रक्रिया को जीवंत करते हैं। किताब में बताया गया है कि कैसे बाढ़, राजनीतिक परिस्थितियां और संसाधनों की कमी के बावजूद खोज जारी रही और कैसे यह सभ्यता विश्व इतिहास में स्थान बनाया। किताब में मार्शल के नोट्स से पता चलता है कि वे सभ्यता की शांतिपूर्ण प्रकृति से बहुत प्रभावित थे।
खोज प्रक्रिया में आधुनिक तकनीक का उपयोग बढ़ा है। सैटेलाइट इमेजरी, जीआईएस, ड्रोन और जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) से नए स्थल खोजे जा रहे हैं। 2025 में, राजस्थान के थार मरुस्थल में नए अवशेष मिले हैं, जो सभ्यता के विस्तार को और बढ़ाते हैं। यह दिखाता है कि सभ्यता केवल नदियों तक सीमित नहीं थी, बल्कि मरुस्थलीय क्षेत्रों में भी फैली थी। दिसंबर 2025 में, गुजरात में एक नया स्थल मिला, जहां जल संरक्षण के प्रमाण हैं, जो धोलावीरा से मिलते-जुलते हैं। ये नई खोजें सभ्यता की अनुकूलन क्षमता दर्शाती हैं और बताती हैं कि लोग पर्यावरण के अनुसार बदलाव करते थे। ये खोजें सभ्यता की उम्र को और पुराना साबित कर रही हैं और भविष्य में और रहस्य उजागर करेंगी। दिसंबर 2025 की रिपोर्टों में कहा गया है कि अगले कुछ वर्षों में और कई स्थल मिल सकते हैं।
“यह सभ्यता युद्ध या साम्राज्य विस्तार पर नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण जीवन और व्यापार पर आधारित थी। यहां कोई हथियार या युद्ध के चित्र नहीं मिले। यह मानवता के लिए एक आदर्श है।” – सर जॉन मार्शल
इस प्रकार, सिंधु घाटी सभ्यता की खोज न केवल पुरातत्व की सफलता है, बल्कि मानव इतिहास की समझ को बढ़ाने वाली है। यह हमें बताती है कि प्राचीन काल में भी उन्नत समाज संभव थे, जहां स्वच्छता, नियोजन और व्यापार पर जोर था। खोज का यह सफर आज भी जारी है और हर साल नए रहस्य उजागर हो रहे हैं। दिसंबर 2025 में प्रकाशित रिपोर्टों में कहा गया है कि अगले दशक में और कई स्थल खोजे जा सकते हैं, जो सभ्यता की पूरी तस्वीर बदल सकते हैं। यह खोज हमें अपनी विरासत से जोड़ती है और गर्व का अनुभव कराती है। सभ्यता की खोज ने न केवल भारत बल्कि विश्व को एक नई दृष्टि दी है।
प्रमुख खोजकर्ता और मिली कलाकृतियां (तालिका)
| खोजकर्ता | स्थल | वर्ष | प्रमुख मिली कलाकृतियां/विशेषताएं |
|---|---|---|---|
| दयाराम साहनी | हड़प्पा | 1921 | अनाज भंडार, मुहरें, कांस्य औजार, कब्रिस्तान, जल निकासी प्रणाली, पक्की ईंटों के घर, ग्रिड सड़कें, मनके, कुएं, व्यापारिक अवशेष, कांस्य उपकरण, घरों की संरचना |
| राखाल दास बनर्जी | मोहनजोदड़ो | 1922 | महान स्नानागार, नृत्य कन्या मूर्ति, पुजारी राजा मूर्ति, पशुपति मुहर, उन्नत जल निकासी, अनाज भंडार, कुएं, मूर्तियां, सड़कें, घर, लिपि, कला |
| सर जॉन मार्शल | समन्वयक (हड़प्पा और मोहनजोदड़ो) | 1924 (घोषणा) | सभ्यता की आधिकारिक पहचान, मानकीकृत नगर नियोजन के प्रमाण, मुहरें, लिपि, व्यापार के अवशेष, शिल्पकला, कला के नमूने, सभ्यता के चरण, किताब, तुलना |
| एम. एस. वत्स | हड़प्पा (बाद की खुदाई) | 1926-34 | अनाज भंडार की पूरी संरचना, मुहरें, मनके, कांस्य उपकरण, कब्रिस्तान में आभूषण, सड़कें, घरों की संरचना, किले, कब्रें, अवशेष |
| जे. पी. जोशी | धोलावीरा | 1967-68 (खोज), 1990 से खुदाई | जलाशय, स्टेडियम जैसी संरचना, शिलालेख (10 चिह्न), तीन भागों में शहर, जल प्रबंधन, मनके, स्टेडियम, दीवारें, व्यापार, घर, अवशेष |
| एस. आर. राव | लोथल | 1954-63 | कृत्रिम बंदरगाह, मनके फैक्ट्री, गोदी, गोदाम, मुहरें, व्यापारिक अवशेष, जहाज निर्माण के प्रमाण, ईंटों का बंदरगाह, वजन, मनके, फैक्ट्री, अवशेष |
| बी. बी. लाल और बी. के. थापर | कालिबंगा | 1953-69 | हल चलाने के निशान, अग्नि वेदिकाएं, जुते खेत, मिट्टी की हल की नकल, दीवारें, किले, घर, कृषि प्रमाण, बर्तन, अवशेष |
| अमरेंद्र नाथ और वर्तमान टीम | राखीगढ़ी | 1997 से जारी | आभूषण कार्यशाला, डीएनए सैंपल, जल निकासी, किले, मनके फैक्ट्री, नए कंकाल, कार्यशालाएं, बाजार, घर, डीएनए, अवशेष (2025 तक) |
यह तालिका प्रमुख खोजकर्ताओं और उनके योगदान को दर्शाती है। दिसंबर 2025 तक राखीगढ़ी और धोलावीरा की खुदाई में नए प्रमाण मिले हैं, जो सभ्यता की उन्नति को और साबित करते हैं। ये खोजकर्ता न केवल स्थल खोजे, बल्कि सभ्यता की समझ को बढ़ाया और विश्व स्तर पर भारत की प्राचीन विरासत को स्थापित किया। तालिका से पता चलता है कि प्रत्येक स्थल की अपनी अनोखी विशेषताएं हैं, जो सभ्यता की विविधता दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, मोहनजोदड़ो में मिली मूर्तियां कला की उन्नति दिखाती हैं, जबकि लोथल में बंदरगाह व्यापार की। कालिबंगा में कृषि के प्रमाण वैदिक काल से संबंध जोड़ते हैं। ये कलाकृतियां और विशेषताएं सभ्यता की दैनिक जीवन, धर्म और अर्थव्यवस्था को समझने में मदद करती हैं। तालिका में सूचीबद्ध अवशेष सभ्यता की उन्नति के ठोस प्रमाण हैं।
2. समय काल और विकास के तीन मुख्य चरण
पुरातत्वविदों ने सिंधु घाटी सभ्यता को तीन मुख्य चरणों में विभाजित किया है, जो इसके विकास और पतन को समझने में मदद करते हैं। यह विभाजन रेडियोकार्बन डेटिंग, स्ट्रेटिग्राफी और अवशेषों पर आधारित है। प्रत्येक चरण की अपनी विशेषताएं हैं, और 2025 के शोध ने इन चरणों को और सटीक बनाया है। चरणों का यह विभाजन सभ्यता की प्रगति को स्पष्ट करता है और बताता है कि यह कैसे विकसित हुई और क्यों समाप्त हुई। समय काल की यह समझ सभ्यता की आयु और विकास को निर्धारित करती है। 2025 के शोध में नए डेटिंग विधियों से चरणों की तारीखें और स्पष्ट हुई हैं।
प्रारंभिक हड़प्पाई काल (3300-2600 ई.पू.) यह संक्रमण काल था जब छोटे गांव शहरों में बदलने लगे। मेहरगढ़, कोट दीजी, अमरी जैसे स्थल इस काल के हैं। यहां कृषि, पशुपालन और प्रारंभिक शिल्प विकसित हुए। मिट्टी के घर, कुएं, प्रारंभिक मुहरें और मिट्टी के बर्तन मिले हैं। इस काल में लोग नदियों के किनारे बसने लगे और मानसून पर निर्भर कृषि शुरू हुई। 2025 के शोध बताते हैं कि इस काल में जलवायु बहुत अनुकूल थी, जो तेज विकास का कारण बनी। मेहरगढ़ में मिले 8000 ईसा पूर्व के अवशेष दिखाते हैं कि कृषि क्रांति यहां से शुरू हुई। यहां गेहूं, जौ और पशुओं के प्रमाण मिले हैं, जो दुनिया के सबसे प्राचीन हैं। इस चरण में समाज छोटे-छोटे गांवों में रहता था, लेकिन धीरे-धीरे व्यापार और शिल्प बढ़ा। प्रारंभिक मुहरें और मनके इस काल की शुरुआती व्यापार गतिविधियों के प्रमाण हैं। इस काल में सभ्यता की नींव पड़ी, जो बाद में बड़े शहरों का आधार बनी। मेहरगढ़ में मिले घर और भंडारण गड्ढे दिखाते हैं कि लोग स्थायी बसावट कर रहे थे। इस काल में पशुपालन महत्वपूर्ण था, और गाय, भेड़ जैसे पशु पाले जाते थे। प्रारंभिक काल में मिट्टी के बर्तनों पर ज्यामितीय डिजाइन मिले हैं, जो कला की शुरुआत दर्शाते हैं। इस काल में जनसंख्या बढ़ी और गांव बड़े होने लगे। प्रारंभिक काल में लोग तांबे के औजारों का उपयोग करने लगे थे, जो धातु युग की शुरुआत थी। यह काल सभ्यता के आधार का निर्माण करता है और लगभग 700 वर्ष चला।
परिपक्व हड़प्पाई काल (2600-1900 ई.पू.) यह सभ्यता का स्वर्ण युग था। बड़े शहर बने, मानकीकृत नगर नियोजन हुआ, लिपि और मुहरें विकसित हुईं। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा, लोथल, राखीगढ़ी इसी काल के प्रमुख शहर हैं। व्यापार चरम पर था और जनसंख्या लाखों में पहुंच गई। इस काल में सभ्यता की सभी विशेषताएं – जैसे उन्नत जल निकासी, ग्रिड सड़कें और व्यापार – चरम पर थीं। शहरों में अनाज भंडार, स्नानागार और कार्यशालाएं थीं। यह काल लगभग 700 वर्ष चला और इस दौरान सभ्यता का विस्तार चरम पर था। 2025 के जलवायु अध्ययनों से पता चलता है कि इस काल में मानसून मजबूत था, जो कृषि को बढ़ावा देता था। परिपक्व काल में लिपि का विकास हुआ, जो अभी तक अपठित है, लेकिन मुहरों पर 400 से अधिक चिह्न मिले हैं। यह काल सभ्यता की उन्नति का प्रतीक है, जहां कोई युद्ध के प्रमाण नहीं मिले। शहरों में सार्वजनिक भवन और निजी घरों का मानकीकरण दिखाता है कि समाज में समानता थी। परिपक्व काल में व्यापार नेटवर्क बहुत बड़ा था, जो मेसोपोटामिया तक फैला था। मुहरें और वजन प्रणाली इस काल की आर्थिक उन्नति दर्शाती हैं। इस काल में शिल्पकला चरम पर थी, और मनके, मूर्तियां और बर्तन उन्नत थे। परिपक्व काल में धर्म और संस्कृति का विकास हुआ, जो मुहरों और मूर्तियों से पता चलता है। यह काल सभ्यता की पहचान है और सबसे अधिक अवशेष इसी काल के हैं।
उत्तर हड़प्पाई काल (1900-1300 ई.पू.) पतन का काल। शहर खाली होने लगे, मानकीकरण कम हुआ। लोग छोटे गांवों में बस गए। लेकिन संस्कृति पूरी तरह नष्ट नहीं हुई, बल्कि वैदिक काल में विलीन हो गई। इस काल में सिमेंट्री एच संस्कृति (पंजाब), झुकर संस्कृति (सिंध) और रंगपुर संस्कृति (गुजरात) जैसे स्थानीय रूप विकसित हुए। अवशेषों से पता चलता है कि व्यापार कम हुआ और कृषि प्रभावित हुई। 2025 के शोध में यह काल जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ पाया गया है। उत्तर काल में लोग पूर्व की ओर पलायन कर गए, जहां गंगा घाटी में नई सभ्यता विकसित हुई। यह पतन धीमा था, न कि अचानक, और लगभग 600 वर्ष चला। इस काल में मिट्टी के बर्तनों में बदलाव आया और नए डिजाइन आए। उत्तर काल में कुछ स्थलों पर नए प्रकार की मुहरें और बर्तन मिले हैं, जो स्थानीय संस्कृति का विकास दर्शाते हैं। यह काल सभ्यता के अंत का नहीं, बल्कि परिवर्तन का है और वैदिक काल की नींव रखता है।
समय काल की तुलना अन्य सभ्यताओं से करें तो, जब सिंधु सभ्यता परिपक्व थी, तब मिस्र में पिरामिड बन रहे थे और मेसोपोटामिया में सुमेरियन शहर थे। लेकिन सिंधु सभ्यता उनसे अधिक शांतिपूर्ण और उन्नत थी, क्योंकि यहां युद्ध के कोई प्रमाण नहीं मिले। 2025 के शोध में समय काल को और सटीक बनाया गया है, जहां रेडियोकार्बन डेटिंग से चरणों की तारीखें अपडेट हुई हैं। यह शोध सभ्यता की अवधि को और लंबा बताते हैं और विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हैं। समय काल की यह समझ सभ्यता के अध्ययन का आधार है।
3. भौगोलिक विस्तार और प्रमुख स्थलों का विस्तृत वर्णन
सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु, घग्गर-हakra (प्राचीन सरस्वती), रावी, झेलम, सतलुज और अन्य नदियों के मैदानों में फैली थी। इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से दक्षिण में दाइमाबाद (महाराष्ट्र) तक और पश्चिम में सुत्कागेनडोर (बलूचिस्तान) से पूर्व में आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक था। कुल 1500+ स्थल खोजे गए हैं, जिनमें से 1000 से अधिक पाकिस्तान में और बाकी भारत में हैं। इस विस्तार से सभ्यता की व्यापकता पता चलती है। सभ्यता न केवल नदी घाटियों तक सीमित थी, बल्कि पहाड़ी और मरुस्थलीय क्षेत्रों में भी फैली थी। 2025 के शोध में नए स्थल मिले हैं, जो विस्तार को और बढ़ाते हैं। ये स्थल दिखाते हैं कि सभ्यता पर्यावरण के अनुसार अनुकूलित थी और विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई थी। विस्तार का यह पैटर्न सभ्यता की मजबूती दर्शाता है।
3.1 हड़प्पा
रावी नदी के किनारे बसा हड़प्पा इस सभ्यता का नामकरण स्थल है। शहर दो भागों में था – सिटाडेल (ऊपरी शहर) और निचला शहर। यहां विशाल अनाज भंडार (ग्रैनरी) मिले हैं जो अतिरिक्त उत्पादन और व्यापार की गवाही देते हैं। कब्रिस्तान में आभूषणों वाली कब्रें मिली हैं। खुदाई में कांस्य के औजार, मुहरें और मनके मिले हैं। 2025 की खुदाई में यहां जल निकासी प्रणाली के नए प्रमाण मिले हैं, जो दिखाते हैं कि सड़कों के नीचे ढकी नालियां थीं। हड़प्पा का क्षेत्रफल 150 हेक्टेयर था और यहां 20,000 से अधिक लोग रहते थे। अनाज भंडार 12 कमरों के थे और करों या व्यापार के लिए इस्तेमाल होते थे। हड़प्पा में मिली मुहरें मेसोपोटामिया से संबंध दर्शाती हैं। हड़प्पा में मिले घर दो मंजिला थे और कुएं थे। यह स्थल सभ्यता की आर्थिक शक्ति का प्रतीक है। हड़प्पा में मिले अवशेष दिखाते हैं कि यहां बड़ा बाजार था और व्यापार केंद्र था। हड़प्पा की दीवारें और किले रक्षा व्यवस्था दर्शाते हैं।
3.2 मोहनजोदड़ो
सिंधु नदी के किनारे बसा यह शहर UNESCO विश्व धरोहर है। इसका अर्थ ‘मुर्दों का टीला’ है। यहां महान स्नानागार (Great Bath), नृत्य करती कन्या की कांस्य मूर्ति, दाढ़ी वाले पुजारी राजा की मूर्ति और दुनिया की सबसे उन्नत जल निकासी प्रणाली मिली है। शहर 500 हेक्टेयर में फैला था और लगभग 40,000 लोग रहते थे। महान स्नानागार धार्मिक शुद्धिकरण के लिए था और यह 39×23 फीट का था। 2025 के डीएनए अध्ययन से पता चला कि यहां के लोग विविध जातीय पृष्ठभूमि के थे, जिसमें दक्षिण एशियाई और ईरानी मिश्रण था। मोहनजोदड़ो में मिली पशुपति मुहर शिव जैसे देवता को दर्शाती है। शहर में ग्रिड सड़कें और ढकी नालियां थीं। मोहनजोदड़ो सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध स्थल है और इसकी उन्नति आधुनिक शहरों से कम नहीं थी। मोहनजोदड़ो में मिले अनाज भंडार और कुएं दैनिक जीवन को दर्शाते हैं। मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली मूर्तियां कला की ऊंचाई दिखाती हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता पर 50 MCQ (One-Liner Question – Answer Format)
सिंधु घाटी सभ्यता हमें सिखाती है कि सच्ची उन्नति शांति, स्वच्छता और व्यापार से आती है। दिसंबर 2025 तक के शोध हमें जलवायु परिवर्तन से सतर्क करते हैं। यह सभ्यता भारत की गौरवशाली विरासत है और आज भी प्रेरणा देती है।